655. काहे के धर्माधिकारी आप हैं (मुक्तक)
काहे के धर्माधिकारी आप हैं, एक भी आदर्श जो नहिं गढ़ सके।
वेद पाठन यह भला किस काम का, वेदना इंसान की नहिं पढ़ सके।
आस्तीनों को चढ़ा छाती फुला, खुद को अल्ला राम जो कहते फिरें।
आदमी वे आदमी की राह पर, दो कदम भी आज तक नहिं बढ़ सके।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.12.2018
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