603. पूत कमाऊ की हालत पर (नवगीत)
पूत कमाऊ की हालत पर,
रोती धरती अम्मा।
फूटा तवा, पतीली फूटी,
और कठौती फूटी,
टूटी खाट, झोपड़ी टूटी,
हर आशा है टूटी,
पीढ़ी दर पीढ़ी से डेरा,
डारे है कंगाली,
तीस साल में साठ साल की,
लगती है घरवाली,
फटा घाघरा झुनिया पहने,
होरी फटा पजम्मा।
ना नाली ना दिखे खरंजा,
केवल कीचड़ दलदल,
मंत्रीजी के दौरे पर ही,
दिखती है कुछ हलचल,
कितने तेज हो गए देखो,
ये अफसर सरकारी,
उन गाँवों में भी विद्युत बिल,
भेजें भरकम भारी,
जिन गांवों में नहीं दीखता,
बिजली का इक खम्मा।
धनपतियों को रोज जुहारे,
यह सिस्टम सरकारी।
राजनीत कर रही चाकरी,
नेता पहरेदारी,
इनके पीछे दूम हिलाता,
शासन और प्रशासन,
बड़े-बड़े इनके घर जाकर,
करते हैं शीर्षासन,
चार दिनों में देशभक्ति का,
छूटन लगा मुलम्मा।
जो हैं गुंडे, चोर-लफंगे
करते जो ऐय्यासी,
लूटपाट कर जोड़ रहे जो,
दौलत अच्छी खासी,
माल खजाना ले उड़ जाते,
एक संग झटके से,
देश छोड़कर के विदेश में,
बैठे बेखटके से,
मौज कर रहा सुंदरियों सँग,
अब हर एक निकम्मा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.08.2018
*****
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.