600. जब शोषित वर्ग के लोग (लेख)
जब शोषित वर्ग के लोग, अपना जीवन स्तर सुधारने की, अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़ने की, मन मुताबिक व्यवसाय करने की, शिक्षित होने की, डॉ, वकील, जज, अधिकारी बनने की, अच्छा खाने की, अच्छा पहने की, अच्छा घर बनाने की, आँख में आँख डालकर बात करने की, अपना पक्ष रखने, अपने हक की, समानता की, अत्याचार और शोषण के विरोध की बात करते हैं तो कुछ वर्ग विशेष के सामंती प्रवृत्ति के लोग, जो ऊँचनीच, छुआछूत, गैर बराबरी में विश्वास रखते हैं, यह सब सहन नहीं कर पाते और धर्म का रोना, रोने लगते हैं। वे इसे अपने धर्म के विरुद्ध मानने लगते हैं। यह कैसी बात हुई?
अगर किसी धर्म और उसके ग्रन्थों की ऐसी बातें, दृष्टांत, प्रसंग, जो मानवता, समानता, नारी सम्मान, लोकहित, उन्नतिशीलता, राष्ट्रहित के विरुद्ध हों, उन्हें ज्यादा दिनों तक आदर्श बनाकर नहीं रख सकते। उन्हें बदलना ही होगा। समय के साथ परिवर्तन, एक शास्वत नियम है।
असमानता, ऊँच-नीच, छुआछूत, वर्ण-व्यवस्था, जातिपाँति से ग्रस्त और मनुष्य-मनुष्य में भेद करने वाले धर्म और उनके धर्मग्रंथों को बहुत दिनों तक जीवित नहीं रखा जा सकता।
रणवीर सिंह "अनुपम"
12.09.2018
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