Sunday, September 30, 2018

612. बंदूकें ताने खड़े (कुंडलिया)

612. बंदूकें ताने खड़े (कुंडलिया)

29 सितंबर 2018 को रात 2.00 के करीब, लखनऊ के गोमती नगर में उत्तर प्रदेश पुलिस ने विवेक तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी। यह सरकार और पुलिस की संवेदनहीनता का द्योतक है। जब प्रदेश का मुखिया टीवी पर खुलेआम एनकाउंटर करने की बात कहे, आरोपियों को ठोंकने की बात करे, तो पुलिस निरंकुश होकर हत्याएं ही करेगी।

यह तो अच्छा है कि पुलिस को मौक़ा नहीं मिल पाया, न तो एकाध हथियार दिखाकर उसने स्वर्गीय विवेक जी को कब का गुंडा घोषित कर दिया होता।

बंदूकें  ताने  खड़े,  सीधी   सिर  पर  नोंक।
सावधान  होकर रहो, कबहुँ  देंय  ये  ठोंक।
कबहुँ  देंय  ये ठोंक, छूट  इनको  सरकारी।
किससे करें गुहार, पुलिस ही  जब हत्यारी।
रो - रोकर  के लोग, लाश अपनों की फूँकें।
वर्दीधारी     नरपिशाच      ताने       बंदूकें।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.09.2018
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बंदूकें  ताने  खड़े,  सीधी   सिर  पर   नोंक।
सावधान  होकर  रहो, कबहुँ  देंय  ये ठोंक।
कबहुँ  देंय  ये  ठोंक, छूट  इनको सरकारी।
किससे करें गुहार, पुलिस  हो जब हत्यारी।
इधर लोग विक्षिप्त, लाश अपनों  की फूँकें।
उधर  खड़ी  सरकार,  तानकर   के  बंदूकें।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.09.2018
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Saturday, September 29, 2018

611. हम समझते थे कि (मुक्तक)

भारत द्वारा फ्रांस की दसॉल्ट कंपनी से 126 राफाल फाइटर की जगह 36 खरीदने पर मचे घमासान पर एक मुक्तक।

611. हम समझते थे कि (मुक्तक)

हम समझते थे कि  केवल, हम  ही  मौकापरस्त हैं।
पर दिखा इस व्याधि से तो,  पश्चिमी  भी   त्रस्त  हैं।
झूठ तब भी त्याज्य ना था, झूठ अब भी त्याज्य ना,
लोभ  लालच  भ्रष्टता   से, आप  भी  अब  ग्रस्त हैं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.09.2018
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Friday, September 28, 2018

610. सोचता हूँ कि अब (लेख)

610. सोचता हूँ कि अब (लेख)

सोचता हूँ कि अब यह कविता, सविता छोड़-छाड़कर बाबा बन जाऊँ। भारत में, आजकल बाबाओं का भविष्य बहुत उज्ज्वल दिख रहा है। बाबागीरी में ज्यादा खर्चा भी नहीं, केवल दो चार श्लोक, दो चार सूक्तियाँ, एक-दो कबीर, रहीम, रैदास, तुलसी, मीराबाई आदि के पद रट लो और थोड़ा-सा ज्ञान नीबुओं, समोसों, चटनियों के बारे प्राप्त कर लो, बस इतनी सामिग्री से काम चल जाएगा। वैसे भी आदमी को मितव्ययी होना चाहिए, खासकर उस चीज का, जो उस व्यक्ति के पास पहले से ही कम हो।

इसी के साथ, अगर दो-चार भजन गाने सीख लिए तो प्रभु की भक्ति के साथ-साथ, चेला-चेलियों की सेवा का लाभ भी प्राप्त होता रहेगा।

इतना भर कर लेने से मैं धर्म का और धर्म मेरा, लोग मेरे, नेता मेरे, सरकार मेरी, देश मेरा। इसके अलावा मुझ जैसे प्राणी को क्या चाहिए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.09.2018
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Saturday, September 22, 2018

606. भक्ति की शक्ति (मुक्तक)

606. भक्ति की शक्ति (मुक्तक)

हर-हरि के  चोले को ओढ़े, कामुकता यूँ  तल्लीन मिली।
इक-इक के सँग सौ बालाएं, तबियत इतनी रंगीन मिली।
प्रभु के घर में नहिं भेदभाव, सबको देते फल भक्ती का।
काहू को मिलती हनीप्रीत, तो काहू  को जसलीन मिली।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
22.09.2018
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Sunday, September 16, 2018

603. पूत कमाऊ की हालत पर (नवगीत)

603. पूत कमाऊ की हालत पर (नवगीत)

पूत कमाऊ की हालत पर,
रोती धरती अम्मा।

फूटा तवा, पतीली फूटी,
और कठौती फूटी,
टूटी खाट, झोपड़ी टूटी,
हर आशा है टूटी,
पीढ़ी दर पीढ़ी से डेरा,
डारे है कंगाली,
तीस साल में साठ साल की,
लगती है घरवाली,
फटा घाघरा झुनिया पहने,
होरी फटा पजम्मा।

ना नाली ना दिखे खरंजा,
केवल कीचड़ दलदल,
मंत्रीजी के दौरे पर ही,
दिखती है कुछ हलचल,
कितने तेज हो गए देखो,
ये अफसर सरकारी,
उन गाँवों में भी विद्युत बिल,
भेजें भरकम भारी,
जिन गांवों में नहीं दीखता,
बिजली का इक खम्मा।

धनपतियों को रोज जुहारे,
यह सिस्टम सरकारी।
राजनीत कर रही चाकरी,
नेता पहरेदारी,
इनके पीछे दूम हिलाता,
शासन और प्रशासन,
बड़े-बड़े इनके घर जाकर,
करते हैं शीर्षासन,
चार दिनों में देशभक्ति का,
छूटन लगा मुलम्मा।

जो हैं गुंडे, चोर-लफंगे
करते जो ऐय्यासी,
लूटपाट कर जोड़ रहे जो,
दौलत अच्छी खासी,
माल खजाना ले उड़ जाते,
एक संग झटके से,
देश छोड़कर के विदेश में,
बैठे बेखटके से,
मौज कर रहा सुंदरियों सँग,
अब हर एक निकम्मा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.08.2018
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Saturday, September 15, 2018

602. चोर कर्म से डरो

रक्ता छंद (वर्णिक)-2121212

602. चोर कर्म से डरो

चोर  कर्म   से  डरो।
कद्र वक्त  की  करो।
सूर्य  से  जला करो।
रोशनी  करा   करो।

जुल्म से झुको नहीं।
साथियो  रुको नहीं।
राष्ट्र    है   निहारता।
आप  को  पुकारता।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.08.2018
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Wednesday, September 12, 2018

600. जब शोषित वर्ग के लोग (लेख)

600. जब शोषित वर्ग के लोग (लेख)

जब शोषित वर्ग के लोग, अपना जीवन स्तर सुधारने की, अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़ने की, मन मुताबिक व्यवसाय करने की, शिक्षित होने की, डॉ, वकील, जज, अधिकारी बनने की, अच्छा खाने की, अच्छा पहने की, अच्छा घर बनाने की, आँख में आँख डालकर बात करने की, अपना पक्ष रखने, अपने हक की, समानता की, अत्याचार और शोषण के विरोध की बात करते हैं तो कुछ वर्ग विशेष के सामंती प्रवृत्ति के लोग, जो ऊँचनीच, छुआछूत, गैर बराबरी में विश्वास रखते हैं, यह सब सहन नहीं कर पाते और धर्म का रोना, रोने लगते हैं। वे इसे अपने धर्म के विरुद्ध मानने लगते हैं। यह कैसी बात हुई?

अगर किसी धर्म और उसके ग्रन्थों की ऐसी बातें, दृष्टांत, प्रसंग, जो मानवता, समानता, नारी सम्मान, लोकहित, उन्नतिशीलता, राष्ट्रहित के विरुद्ध हों, उन्हें ज्यादा दिनों तक आदर्श बनाकर नहीं रख सकते। उन्हें बदलना ही होगा। समय के साथ परिवर्तन, एक शास्वत नियम है।

असमानता, ऊँच-नीच, छुआछूत, वर्ण-व्यवस्था, जातिपाँति से ग्रस्त और मनुष्य-मनुष्य में भेद करने वाले धर्म और उनके धर्मग्रंथों को बहुत दिनों तक जीवित नहीं रखा जा सकता।

रणवीर सिंह "अनुपम"
12.09.2018
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Saturday, September 08, 2018

598. भगवान ने इंसान को बनाया (लेख)

598. भगवान ने इंसान को बनाया (लेख)

भगवान ने इंसान को बनाया हो या न बनाया हो, पर यह बात सच है कि इस संसार में कुछ शातिर लोगों ने भगवान को जरूर बनाया है। उन्होंने भगवान को न सिर्फ बनाया बल्कि उसे कमाई का जरिया भी बनाया और उसके नाम पर हजारों वर्षों से लोगों का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण करते आ रहे हैं। अब तो उनका यह धंधा खरबों के व्यवसाय में तब्दील हो गया है। अरे मनुष्य! गिरने की भी एक सीमा होती है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.09.2018
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597. मारा-मारा फिर रहा (कुण्डलिया)

597. मारा-मारा फिर रहा (कुण्डलिया)

मारा-मारा फिर रहा, गलियों बीच विकास।
कहता वो ही  ले मरे, जिन पर था विश्वास।
जिन  पर  था  विश्वास, घूमते  माउंट आबू।
सुत   डीजल  -  पेट्रौल,  हुए  मेरे   बेकाबू।
इन दोनों की वजह, आज हो गया नकारा।
रो-रो  कहे  विकास, मुझे अपनों  ने  मारा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.09.2018
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