Sunday, October 07, 2018

616. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते (लेख)

616. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते (लेख)

मन में बार-बार प्रश्न उठता है कि क्या पुस्तकों में लिखी अच्छी-अच्छी आदर्शवादी सूक्तियों को पढ़ने-पढ़ाने से भारतीय समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव देखने को मिला। मुझे तो यह न के बराबर लगता है। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो हजारों वर्ष पूर्व "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तंत्र देवता:" सूत्र रटने वाले, इसकी महिमा का बखान करने वाले और तत्कालीन समाज में उच्च हैसियत रखने वाले तथाकथित भद्र पुरुष सरस्वती, अहिल्या, तारा, मत्स्यगंधा, द्रोपदी, आम्रपाली आदि के साथ दुष्कर्म और दुराचार न करते। सोचने की बात यह है कि इस सबके बाबजूद दंडविधान के अनुसार ऐसे लोगों को उनके वर्ण से च्युति नहीं किया गया, उल्टे तत्कालीन धर्माधिकारियों द्वारा उनका महिमा मंडन किया गया।

हजारों वर्षों से "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तंत्र देवता:" सूत्र को भागवत कथा में सुनने-सुनाने से और वर्तमान में इसका भाषणों में जिक्र होने से तथा आये दिन टीवी पर चर्चा होने के बाद भी नारियों के प्रति हमारी सोच में कोई खास सकारात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है। हमारी सोच का स्तर आज भी उतना ही संकीर्ण है जितना पहले था। हम नारियों की महानता, महत्व का बखान आज भी वैसे ही करते रहते हैं जैसे पहले करते थे। परंतु सच्चाई यह है कि जब भी अवसर मिलता है उनका हर प्रकार से उपभोग किया जाता है। हम आज भी उनकी स्वतंत्रता, स्वाभिमान और स्वतंत्र अस्तित्व को सहन नहीं कर पाते। उनका सम्मान करना तो दूर, उनकी "न" को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते।

समाज में आज भी नारियों का अस्तित्व उनके पति के अस्तित्व से जोड़कर देखा जाता है। उदाहरण स्वरूप आज भी कितनी नारियाँ ग्राम प्रधान होने के बाद भी खुद निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र नहीं हैं। ज्यादातर के निर्णय उनके नाम पर उनके पति लेते हैं। मजे की बात यह है कि इसके लिए उन्होंने एक प्रधानपति नाम से पद भी सृजित कर लिया है।

मैंने तो इस देश में नारियों का हर क्षेत्र में दोहन, उपभोग होते ही देखा, चाहे वह व्यापार हो, सिनेमा हो, टीवी हो, राजनीत हो, धर्मक्षेत्र हो, आस्था हो या धर्मगुरुओं के आश्रम हों। इन सबमें, धर्मक्षेत्र सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए कोसों आगे निकल गया है। वर्तमान में कई तथाकथित नामीगिरामी धर्मगुरु, नारी को शक्ति-दुर्गा का रूप बताते, बताते, उसकी देह का उपभोग करने में भोग-विलास की सारी सीमाएं लांघ गए। यह बात अलग है कि अब वे जेल की दीवारें नहीं लांघ पा रहे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'।
07.10.2018
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