आप यहाँ पर जीवन के विभिन्न पहलुओं पर स्तरीय रचनाएँ पढ़ सकते हैं।
580. खींचकर कान तक (मुक्तक)
खींचकर कान तक, काहे को गहे है इसको। जिए सौ साल वो,जीने की ललक हो जिसको। नजर के वार से, पहले ही जिगर घायल है। छोड़ दे तीर यह, जीने की तलब है किसको।
रणवीर सिंह 'अनुपम' 18.07.2018 *****
Note: Only a member of this blog may post a comment.
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.