Wednesday, July 18, 2018

580. खींचकर कान तक (मुक्तक)

580. खींचकर कान तक (मुक्तक)

खींचकर कान  तक, काहे को  गहे है  इसको।
जिए सौ साल वो,जीने की ललक हो जिसको।
नजर  के  वार से, पहले  ही  जिगर  घायल है।
छोड़ दे  तीर यह, जीने  की  तलब है किसको।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.07.2018
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