आप यहाँ पर जीवन के विभिन्न पहलुओं पर स्तरीय रचनाएँ पढ़ सकते हैं।
576. तुम्हारे आचरण जैसा
तुम्हारे आचरण जैसा, कहाँ से आचरण लाऊँ, मुझे इस दोगलेपन का, तजुर्बा है नहीं साहब।
अगर मौकापरस्ती के, हुनर को सीख लेता मैं, हजारो आपके जैसे, सलामी दे रहे होते।
रणवीर सिंह 'अनुपम' 01.07.2018 *****
Note: Only a member of this blog may post a comment.
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.