Wednesday, July 18, 2018

579. नहीं अकेले नापे नपता (गीत)

579. नहीं अकेले नापे नपता (गीत)

नहीं अकेले नापे नपता,
जीवन का परिमाप।
एक न एक दिवस जीवन का,
कम होगा संताप।

रोजहिं सपने बाँधे-छोरे,
विरहानल चुप सहती,
आस लगाए मधुर मिलन की,
रस्ता तकती रहती,
समझाती रहती है मन को,
मत कर अरे विलाप।

पिउ-पिउ पपिहा करे मयूरा,
पिय की याद दिलाए,
आसमान से झरतीं बूँदे,
कोमल देह जराए,
चपला का घन को आलिंगन,
बड़ा रहा है ताप।

जब से सुना आ रहे प्रीतम,
झुमका मद में झूमे,
चोली करे ठिठोली कुच से,
नथनी होंठ को चूमे,
पायल चूड़ी कंगन खनके,
बिछुआ है चुपचाप।

कैसे दिवस-दुपहरी गुजरे,
कैसे गुजरीं रातें,
कैसे-कैसे कौल किये थे,
होंगीं सारी बातें,
पिघलेंगे हिमखंड उसी दिन,
बन जाएंगे भाप।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.07.2018
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