Friday, July 27, 2018

584. कब तसले में चून रहा है (गीत)

584. कब तसले में चून रहा है (गीत)

कब तसले में चून रहा है,
कब चूल्हे में आँच रही है।

रहे  ठिठुरते  पूस रात्रि में,
जब तुम  सोए  ओढ़  रजाई,
तन पर ओले  वर्षा  झेली,
जेठ  माह में  देह  तपाई।
कब मेहनत से हटते पीछे,
बोलो कब हम करी मनाही,
नहीं करोड़ों हमने चाहे,
सिर्फ फसल की कीमत चाही।

एक रही ये ही फरमाइश,
कब गिनती ये पाँच रही है।

टूटी छानी के जख्मों को,
आलीशान भवन क्या जानें,
जुगुनूँ भी सूरज होते हैं,
बात भला हम कैसे मानें।
मिथ्या की भी मर्यादा है,
मिथ्या की है सीमा रेखा,
कौन टिका कितना, शब्दों पर,
यह सब हमने भी है देखा।

किसमें कितना झूठ रहा है,
किसमें कितनी साँच रही है।

हर मसले पर देशभक्ति की,
अलख जगाने आ जाते हैं,
भूख प्यास की बात करें तो,
धर्म-जाति को ले आते हैं।
जब से हुए असहमत उनसे,
जब से बात नहीं है मानी,
तब से लूटा-पीटा जाता,
तब से होती खींचातानी।

तब से रोजहिं पुलिस हमारी,
झोपड़ियों को जाँच रही है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.07.2018
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Monday, July 23, 2018

583. अधर गुलाबी अधखिले (कुण्डलिया)

अधर  गुलाबी अधखिले, मधुरिम बहे सुगंध।
अँखियन   से  मदिरा  बहे,  टूट  रहे  तटबंध।
टूट   रहे   तटबंध, नाक  की  नथनी आकुल।
बिंदी बेकल दिखे, कान के  झुमके  व्याकुल।
भ्रमर  चक्षु  मदहोश, बिन  पिये  हुए शराबी।
सृष्टि   हुई   बेचैन,  देखकर  अधर   गुलाबी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.07.2018
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Saturday, July 21, 2018

581. बड़े भाषण बड़ी बातें (मुक्तक)

581. बड़े भाषण बड़ी बातें (मुक्तक)

बड़े भाषण, बड़ी बातें, मुझे करना न आता है।
वही मैं बात करता हूँ, मुझे जो करना' आता है।
यही है खासियत मेरी जो' कहता हूँ सो करता हूँ।
जहाँ के बीच में  रहकर, अलग रहना भी' आता है॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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Wednesday, July 18, 2018

580. खींचकर कान तक (मुक्तक)

580. खींचकर कान तक (मुक्तक)

खींचकर कान  तक, काहे को  गहे है  इसको।
जिए सौ साल वो,जीने की ललक हो जिसको।
नजर  के  वार से, पहले  ही  जिगर  घायल है।
छोड़ दे  तीर यह, जीने  की  तलब है किसको।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.07.2018
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579. नहीं अकेले नापे नपता (गीत)

579. नहीं अकेले नापे नपता (गीत)

नहीं अकेले नापे नपता,
जीवन का परिमाप।
एक न एक दिवस जीवन का,
कम होगा संताप।

रोजहिं सपने बाँधे-छोरे,
विरहानल चुप सहती,
आस लगाए मधुर मिलन की,
रस्ता तकती रहती,
समझाती रहती है मन को,
मत कर अरे विलाप।

पिउ-पिउ पपिहा करे मयूरा,
पिय की याद दिलाए,
आसमान से झरतीं बूँदे,
कोमल देह जराए,
चपला का घन को आलिंगन,
बड़ा रहा है ताप।

जब से सुना आ रहे प्रीतम,
झुमका मद में झूमे,
चोली करे ठिठोली कुच से,
नथनी होंठ को चूमे,
पायल चूड़ी कंगन खनके,
बिछुआ है चुपचाप।

कैसे दिवस-दुपहरी गुजरे,
कैसे गुजरीं रातें,
कैसे-कैसे कौल किये थे,
होंगीं सारी बातें,
पिघलेंगे हिमखंड उसी दिन,
बन जाएंगे भाप।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.07.2018
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Thursday, July 12, 2018

578. गाँव सोचते आज हमारे (गीत)

578. गाँव सोचते आज हमारे (गीत)

गाँव सोचते आज हमारे,
दर पर आया कौन।

महुआ मद में चूर खड़ा है,
आँखें हैं अलसाई,
पीपल जामुन नीम सैंजना,
लेते हैं अँगड़ाई,
कटहल बेल अनारों का दल,
रस्ता रोज निहारे,
भेंटन को तैयार खड़ा है,
गन्ना बाँह पसारे।
उचक रही कन्नेर सलामी,
देते हैं सागौन।

हरियाली की ओढ़ के चूनर,
पगडंडी है निखरी,
जैसे नई-नवेली दुल्हन,
सजधज कर हो निकरी,
आस लगाए राह ताकती,
मन की गाँठ न खोले,
नयन पसारे उसे खोजती,
चुपके से बिन बोले।
उर के दरवाजे पर जबरन,
दस्तक देता जौन।

दरवाजे मुँह धोकर ठाड़े,
चारो ओर निहारें,
सतिये इत-उत देख रहे हैं,
दोऊ नयना फारें,
झोपड़ियाँ हिचकोले लेतीं,
बाँस-बल्लियाँ नाचें,
गली-मोहल्ले उत्साहित हैं,
बस्ती भरे कुलाचें।
उरई और औरैया झूमें,
झूम उठा जालौन।

जब से सुना आ रहे साजन,
हियरा लेत हिलोरें,
समझ न आये किस विधि अपने,
मन को बाँधें-छोरें,
हार ठिठोली करे वक्ष से,
इठलाते हैं झुमके,
यौवन भी बेकाबू दीखे,
देह लगाती ठुमके।
पायल चूड़ी कंगन खनके,
लेकिन बिछुआ मौन।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.07.2018
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Sunday, July 01, 2018

576. तुम्हारे आचरण जैसा

576. तुम्हारे आचरण जैसा

तुम्हारे आचरण  जैसा, कहाँ  से  आचरण लाऊँ,
मुझे  इस  दोगलेपन  का,  तजुर्बा  है  नहीं साहब।

अगर मौकापरस्ती के, हुनर को सीख लेता मैं,
हजारो  आपके  जैसे, सलामी  दे  रहे होते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
01.07.2018
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