Friday, July 08, 2016

260. जलाकर प्रेम का दीपक (मुक्तक)

विधाता छंद

विधाताजी  विधाताजी, विधाताजी विधाताजी
1222        1222,      1222       1222

जलाकर प्रेम का दीपक, बुझाओ मत इसे ऐसे।
बसाकर गैर को दिल में, सताओ मत मुझे ऐसे।
भुलाओगे  अगर   ऐसे,  हँसी  होगी  ज़माने में।
बनी जल्दी बिगड़ जाती, लगें सदियाँ बनाने में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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