Saturday, July 16, 2016

265. मेघ भरी काली रातों में (गीत)

गीत

मेघ भरी काली रातों में,
अनजाना सा पहरा होता।
व्योम ताकते इन नयनों में,
अक्सर ख्वाब सुनहरा होता।।

आँखें मूँद, भूलना चाहूँ, 
फिर क्यों नींद नहीं आती।
करवट बदल-बदलकर यों ही,
रोज रात कटती जाती।

बेकल विरह वेदना से ये,
अंतर तपता सहरा होता।। 1

ख्वावों के उपवन में आकर,
कलिका बन खिल जाती है।
जब ये स्वप्न सुंदरी मुझको,
सपनों में मिल जाती है।

रात दिवाली हो जाती है,
अगला दिवस दशहरा होता।। 2

क्यों मीरा को विष मिलता है,
मजनूँ को पत्थर मिलते।
शीरी औ फरहाद सदा क्यों,
विरह वेदना में जलते।

प्रेम मार्ग क्यों इतना दुष्कर,
क्यों जग गूंगा-बहरा होता।। 3

मर्म भरी अनुराग की' बातें,
अनुरागी ही जान सके।
मुल्ला-पंडित धर्म के' ज्ञाता,
इसको कब पहिचान सके।

प्रेम में' सब कुछ सह जाता जो,
वो सागर से गहरा होता।। 4

रणवीर सिंह (अनुपम)
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