गीत
मेघ भरी काली रातों में,
अनजाना सा पहरा होता।
व्योम ताकते इन नयनों में,
अक्सर ख्वाब सुनहरा होता।।
आँखें मूँद, भूलना चाहूँ,
फिर क्यों नींद नहीं आती।
करवट बदल-बदलकर यों ही,
रोज रात कटती जाती।
बेकल विरह वेदना से ये,
अंतर तपता सहरा होता।। 1
ख्वावों के उपवन में आकर,
कलिका बन खिल जाती है।
जब ये स्वप्न सुंदरी मुझको,
सपनों में मिल जाती है।
रात दिवाली हो जाती है,
अगला दिवस दशहरा होता।। 2
क्यों मीरा को विष मिलता है,
मजनूँ को पत्थर मिलते।
शीरी औ फरहाद सदा क्यों,
विरह वेदना में जलते।
प्रेम मार्ग क्यों इतना दुष्कर,
क्यों जग गूंगा-बहरा होता।। 3
मर्म भरी अनुराग की' बातें,
अनुरागी ही जान सके।
मुल्ला-पंडित धर्म के' ज्ञाता,
इसको कब पहिचान सके।
प्रेम में' सब कुछ सह जाता जो,
वो सागर से गहरा होता।। 4
रणवीर सिंह (अनुपम)
*****