Saturday, April 30, 2016

242. माँ - महल,  झोपड़ी,  झुग्गी (मुक्तक)

माँ

शिशु नौ मास उदर में रखकर, क्या-क्या कष्ट उठाती माँ।
उलटी, मिचली घबराहट सब, हँसकर के सह जाती माँ।
त्याग,  समर्पण,  सहनशक्ति   का,  नाम  दूसरा  है  माता।
झेल  भयानक  प्रसव पीड़ा, शिशु को जग  में लाती माँ।

अंधा,  बहरा,  लूला,  लँगड़ा,  सबको अंक  लगाती माँ।
पहले  पूरे   घर  को  देती,   स्वयं  बाद   में  खाती   माँ।
बच्चों की फरमाइश खातिर, निज पति से लड़ जाती है।
छोटी - छोटी  आमदनी  में,  घर  को  रोज  चलाती  माँ।

महल,  झोपड़ी,  झुग्गी,  तम्बू,  सब  बैकुंठ  बनाती  माँ।
जाने  कितनी  बाधाओं  से,  हर  दिन  है  टकराती  माँ।
देवी बनना  बहुत  सरल  है,  माँ से इसकी  क्या तुलना।
करती जब  सर्वस्व निछावर,  तब जाकर  बन पाती माँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Saturday, April 23, 2016

241 भृकुटी तनी कमान सी (दोहा)

भृकुटी तनी कमान सी, अँखियाँ है तूणीर।
नजर कटीले वाण सी, रही कलेजा चीर।।

कभी बेचता चाय  तो,  सेवक, कभी  किसान।
कभी  कहे  मजदूर  हूँ, सच क्या कहो प्रधान ?

रणवीर सिंह "अनुपम"

Sunday, April 17, 2016

240. इस कदर आप  मुझको (मुक्तक)

मापनी-212  212  212  212
(स्रग्विणी स्रग्विणी स्रग्विणी स्रग्विणी)

इस कदर आप  मुझको न तड़फाइये।
आज  की शाम को, अब चले आइये।
तोड़कर  दिल   हमारा  मिलेगा  क्या?
बात  इतनी  सी' मुझको बता जाइये।।

रणवीर सिंह "अनुपम"
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Sunday, April 10, 2016

239. कुत्तों  ने  बैठक  करी (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

कुत्तों  ने  चर्चा  करी,  अपना  भी  हो  राज।
राजनीत  में भी बढ़े, अपना  कुकुर  समाज।
अपना कुकुर समाज, चचा, ताऊ औ भ्राता।
दे-दे  सबको टिकट,  बनाओ, भाग्यविधाता।
लीनी   जनता   घेर,   गँवार   कुकरमुत्तों  ने।
हाल  किया बेहाल,  देश  का  इन  कुत्तों  ने।

रणवीर सिंह "अनुपम"
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Sunday, April 03, 2016

238. सब यहाँ फूलें-फलें (मुक्तक)

सब  यहाँ   फूलें-फलें,  प्रभु  से  यही  है  कामना।
प्रेम,  करुणा, त्याग  से,  परिपूर्ण  हो  हर भावना।
व्याधि से हो मुक्त प्राणी, हर किसी का ख्याल हो।
शांति हो चहुँदिश धरा पर, ये जगत  खुशहाल हो।

रणवीर सिंह "अनुपम"
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