Wednesday, August 22, 2018

593. बिना जाने किसी को भी (मुक्तक)

593. बिना जाने किसी को भी

बिना जाने किसी को भी, सर-आँखों पर बिठा लेते।
गजब हैं  लोग  टीले  को, हिमालय  मान लेते  हैं।

पड़े राहों  में पत्थर को, शिवालय मान लेते हैं।
अजब हैं लोग टीले को, हिमालय मान लेते हैं।

बजाता गाल जो उसको, धुरंधर मान लेते हैं।
गजब हैं ये कलंदर को, सिकंदर मान लेते हैं।
नयन  होते  हुए अंधे, अक्ल  होते  हुए  बौरे।
तभी ये लोग पोखर को, समंदर मान लेते हैं।

रणवीर सिंह 'अनुअपम'
22.08.2018
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