587. तेरी आँखें हैं लाल काहे को (गजल)
तेरी आँखें हैं लाल काहे को।
हाथ में यह मशाल काहे को।
पहले दर्जा दिया है ईश्वर का,
कर रहा अब सवाल काहे को।
स्वयं जब जाके बैठा कोठे पर,
आबरू का मलाल काहे को।
चित्त अरु पट्ट जब उन्हीं की है,
फिर ये सिक्का, उछाल काहे को।
बहुत कुछ हो रहा है संसद में,
आँख पर ही बवाल काहे को।
बात करनी तो शौक से करिये,
किन्तु मेरी मिसाल काहे को।
गाँधी बनना तो आप खुद बनिये,
यार मेरा ही गाल काहे को।
खींचते हो तो और की खींचो,
रोज मेरी ही खाल काहे को।
रणवीर सिंह ''अनुपम'
09.08.2018
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587. आँख तेरी हैं लाल (मुक्तक)
तेरी आँखें हैं लाल काहे को।
दिल में तेरे मलाल काहे को।
पहले दर्जा दिया है ईश्वर का।
कर रहा अब सवाल काहे को।
रणवीर सिंह ''अनुपम'
09.08.2018
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आँख तेरी हैं लाल काहे को।
हाथ में यह मशाल काहे को।
पहले दर्जा दिया है ईश्वर का,
कर रहा अब सवाल काहे को।
स्वयं जब जाके बैठा कोठे पर,
आबरू का मलाल काहे को।
चित्त अरु पट्ट जब उन्हीं की है,
फिर ये सिक्का, उछाल काहे को।
बहुत कुछ हो रहा है संसद में,
आँख पर ही बवाल काहे को।
बात करनी तो शौक से करिये,
किन्तु मेरी मिसाल काहे को।
गाँधी बनना तो आप खुद बनिये,
यार मेरा ही गाल काहे को।
खींचते हो तो और की खींचो,
रोज मेरी ही खाल काहे को।
रणवीर सिंह ''अनुपम'
09.08.2018
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