Tuesday, September 27, 2016

283. बंदर पाकर उस्तरा (कुण्डलिया)

बंदर   पाकर   उस्तरा,  काटेगें   निज   नाक।
झूठ  कहावत  ये  हुयी,   बन्दर  हैं   चालाक।
बन्दर   हैं   चालाक,   काटते   हैं  अब   जेबें।
दिखा  उस्तरा   हमें,   हमारा   सब   ले  लेबें।
होकर के  हुशियार,  बन  गये आज  कलंदर।
कैसे    रहे   नचाय,  देश  को  शातिर   बंदर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Thursday, September 15, 2016

282. दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी

लावणी छंद:

दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी, शत-शत करते नमन तुन्हें।
त्याग, शौर्य, बलिदान, धर्म का, पाठ पढ़ाया आप हमें।
'तेगबहादुर' पिता आपके, माता 'गुजरी' जन्म दिया।
शूरवीर, कवि, देशभक्त बन, मानव हित में कर्म किया।

जातिपाँति से ऊपर उठकर, सब को ही सम्मान दिया।
देश-धर्म की खातिर अपने, पुत्रों का बलिदान किया।
"सवा लाख से एक लड़ाऊँ", ऐसा नारा आप दिए।
"चिड़ियों से मैं बाज तड़ाऊँ" मन में दृढ़ विश्वास लिए।

वर्ष बियालिस रहे धरा पर, मानवता के काम किये।
कलगीधर, दशमेश आपको, जनता ने उपनाम दिये।
पंथ खालसा आप चलाया, दसवें गुरु प्रभु आप बने।
ऐसे महावीर योद्धा को, धरती सदियों बाद जने।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Sunday, September 04, 2016

281. समय बड़ा है सृष्टि में (कुंडलिया)

समय बड़ा है सृष्टि  में, सब कुछ  इसके  हाथ।
बुद्धि होत विपरीत तब, समय न हो जब साथ।
समय न  हो जब साथ, हिरन  सोने  का  लागे।
लुटी  गोपियाँ   हाय,    धनुर्धर   अर्जुन   आगे।
जग से  सब  लड़ लेंय, समय से कौन लड़ा है।
परमेश्वर   के  बाद,  सृष्टि  में   समय  बड़ा  है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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Friday, September 02, 2016

280. गोरी पर्दा को हटा (कुण्डलिया)

गोरी  पर्दा  को   हटा,  अम्बर  रही   निहार।
लालवर्ण की  कंचुकी,  लँहगा,  चुनरी  धार।
लँहगा, चुनरी  धार,   लगे  ज्यों  कोई  मूरत।
भूल  गई  संसार, जगत  की   नहीं जरूरत।
शांतचित्त, दिन मध्य,  ढूँढ रहि चाँद चकोरी।
मन  में  ले  विश्वास,  देख  रहि  मारग गोरी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'

Thursday, September 01, 2016

279. चैन नहीं दिन रात हमें (मत्तगयंद सवैया)

279. मत्तगयंद सवैया
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चैन नहीं दिन रात हमें सखि, कौन स रोग लगो इ हिया में।
नीर बिना जस मीन करै जस बाति करै बिन तेल दिया में।
कौन सि व्याधि लगी हमकूँ दिन रात समाय रही हुँ पिया में।
प्रीतम काहे कुँ प्राण हरौ मम, काहि कुँ आग लगात जिया में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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