Wednesday, August 22, 2018

593. बिना जाने किसी को भी (मुक्तक)

593. बिना जाने किसी को भी

बिना जाने किसी को भी, सर-आँखों पर बिठा लेते।
गजब हैं  लोग  टीले  को, हिमालय  मान लेते  हैं।

पड़े राहों  में पत्थर को, शिवालय मान लेते हैं।
अजब हैं लोग टीले को, हिमालय मान लेते हैं।

बजाता गाल जो उसको, धुरंधर मान लेते हैं।
गजब हैं ये कलंदर को, सिकंदर मान लेते हैं।
नयन  होते  हुए अंधे, अक्ल  होते  हुए  बौरे।
तभी ये लोग पोखर को, समंदर मान लेते हैं।

रणवीर सिंह 'अनुअपम'
22.08.2018
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Sunday, August 19, 2018

592. गर शब्दों में सार नहीं तो

592. गर शब्दों  में सार नहीं तो

गर शब्दों  में सार नहीं तो  सच मानो,
कुछ भी बोलो केवल गाल बजाना है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.08.2018
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Friday, August 10, 2018

587. तेरी आँखें हैं लाल काहे को (गजल)

587. तेरी आँखें हैं लाल काहे को (गजल)

212  21    2 1 2 2 2    

तेरी  आँखें   हैं  लाल   काहे  को।
हाथ  में   यह  मशाल  काहे  को।

पहले  दर्जा   दिया है  ईश्वर   का,
कर  रहा  अब सवाल  काहे  को।

स्वयं जब  जाके  बैठा  कोठे  पर,
आबरू   का   मलाल  काहे  को।

चित्त अरु  पट्ट  जब  उन्हीं की  है,
फिर ये सिक्का, उछाल काहे को।

बहुत  कुछ  हो  रहा  है  संसद में,
आँख  पर  ही  बवाल  काहे  को।

बात  करनी  तो  शौक से  करिये,
किन्तु  मेरी   मिसाल   काहे  को।

गाँधी  बनना तो आप खुद  बनिये,
यार  मेरा   ही   गाल   काहे   को।

खींचते  हो  तो  और  की   खींचो,
रोज  मेरी   ही  खाल   काहे  को।

रणवीर सिंह ''अनुपम'

09.08.2018
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587. आँख तेरी हैं लाल (मुक्तक)

तेरी  आँखें  हैं   लाल  काहे  को।
दिल  में   तेरे  मलाल  काहे  को।
पहले दर्जा  दिया  है   ईश्वर  का।
कर रहा अब  सवाल  काहे  को।

रणवीर सिंह ''अनुपम'
09.08.2018
*****2  21    2 1 2 2 2    

आँख  तेरी   हैं  लाल  काहे  को।
हाथ  में   यह  मशाल  काहे  को।

पहले  दर्जा   दिया है  ईश्वर   का,
कर  रहा  अब सवाल  काहे  को।

स्वयं जब  जाके  बैठा  कोठे  पर,
आबरू   का   मलाल  काहे  को।

चित्त अरु  पट्ट  जब  उन्हीं की  है,
फिर ये सिक्का, उछाल काहे को।

बहुत  कुछ  हो  रहा  है  संसद में,
आँख  पर  ही  बवाल  काहे  को।

बात  करनी  तो  शौक से  करिये,
किन्तु  मेरी   मिसाल   काहे  को।

गाँधी  बनना तो आप खुद  बनिये,
यार  मेरा   ही   गाल   काहे   को।

खींचते  हो  तो  और  की   खींचो,
रोज  मेरी   ही  खाल   काहे  को।

रणवीर सिंह ''अनुपम'

09.08.2018
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Wednesday, August 08, 2018

586. सिंधु-से गहरे नशीले (शेर)

586. सिंधु-से गहरे नशीले (शेर)

सिंधु - से   गहरे   तुम्हारे,   चक्षुओं   में   डूबकर,
पा लिया अमृत्व  फिर, निर्जीव तट का क्या करें।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.08.2018

Sunday, August 05, 2018

585.  5 अगस्त, फ्रेंडशिप डे पर।

585.  5 अगस्त, फ्रेंडशिप डे पर।

मोहब्बत   भी   अगर   साबित,  पड़े   करनी सबूतों  सेे,
तो  लानत  है  मोहब्बत  पर, मोहब्बत  करने वालों पर।
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बहुत   ही   महँगी   पड़ी   है,  रहनुमाई   आपकी,
जिस्म  नुचबाकर हमें, कीमत चुकानी  पड़  रही।

रहनुमा   सस्ती   नहीं   है,   रहनुमाई  आपकी,
जिस्म नुचबाकर हमें, कीमत चुकानी पड़ रही।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.08.2018
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बहुत  ही  महँगी  पड़ी   है,  रहनुमाई  आपकी,
जिस्म नुचबाकर हमें, कीमत अदा करनी पड़ी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.08.2018
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