गीत (16/14)
संस्कार आदर्श मिट गए,
अब इस नए ज़माने में।
नेकी औ ईमान बिक गए,
अपना काम चलाने में॥
नया जोश अब, नई उमंगें,
नई सभ्यता है आई,
आज सभ्य लोगों ने ली है,
नंगे होकर अँगड़ाई।
क्या-क्या मिले देखने को अब,
यारो नए जमाने में॥ 1
आज जवानी बनी हुई है,
पर्दों का बस आकर्षन।
आज खुली जंघाएं लेकर,
इठलाता फिरता यौवन।
यौवन गर्वित हुआ झूमता,
अपनी देह दिखाने में॥ 2
टुन्न चमेली पौआ पीकर,
मुन्नी भी बदनाम फिरे,
औ मुन्नी वो काम कर रही,
जो न झंडू बाम करे।
पर्दे पर यों दिखें नारियाँ,
आती लाज बताने में॥ 3
नंगे होकर ट्रांजिस्टर संग,
आमिरखाँ प्रचार करे,
वस्त्र त्यागकर आज सभ्यता,
लोगों को हुशियार करे।
जिस्मों का उपयोग हो रहा,
अब बाजार बढ़ाने में॥ 4
रणवीर सिंह (अनुपम)
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