गीत (14/12)
आप को देखा है' जब से,
मन मे'रा बेकल हुआ।
पर तुम्हारा कल कभी नहिं,
आखिरी है कल हुआ।।
मिलने' को हूरें हजारों,
रोज ही मिलतीं रहीं।
सैकड़ों सुकुमारियाँ भी,
संग में चलतीं रहीं।
पर तुम्हारी सादगी पर,
दिल मे'रा पागल हुआ॥ 1
रूप भी निखरा लगे है,
और रंगत छा गई।
चाल भी मदमस्त, तन में,
कुछ लचक है आ गई।
बढ़ गई पैरों की' रौनक,
जब से' मैं पायल हुआ॥ 2
घाव हँस-हँस खा रहा हूँ,
आह भी करता नहीं।
दर्द भी जाता नहीं औ,
जख्म भी भरता नहीं।
कैसी' ये तेरी नजर है,
जिससे' दिल घायल हुआ॥ 3
रणवीर सिंह 'अनुपम'
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