उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
जब हुआ ब्याह आली मेरा, मैं पहुँच गई साजन के घर,
सब ने मिलकर की अगवानी, ले गए मुझे घर के भीतर,
फिर बिठा दिया इक कमरे में, त्रियन ने जमघट लगा लिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
मेरी सास ने आकर कहा मुझे, बेटी अपना मुख दिखलाओ,
मैं भी तो देखूँ एक नजर, अपना ये घूँघट सरकाओ,
जब कुछ नहिं बोली मैं आली, तो उनने घूँघट उठा लिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
आँखें थी उनकी खुली हुई, वह देख रही थी जी भर के,
सिर पर रखके फिर हाथ सखी, मुख चूम लिया खुश होकर के,
मैंने जब उनके पाँव छुए, छाती से अपनी लगा लिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
आशीष मिला माँ के जैसा, माँ के जैसा ही प्यार मिला,
जैसा छूटा परिवार मेरा, आली वैसा परिवार मिला,
जो नेग दिया सासू माँ ने, उसको हाथों में छुपा लिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
त्रियाँ मेरा मुख देख-देख, कहती क्या बहू मिली बहना,
दुल्हा तो किस्मत वाला है, इसकी किस्मत का क्या कहना,
आली उनकी इन बातों ने, मेरे तन-मन को खिला दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
सब भांति-भांति की बात करें, लगता था मुझको सिखा रहीं,
क्या आगे होने वाला है, उसका वो रास्ता दिखा रहीं,
बातों-बातों में उन सब ने, सारी बातों को बता दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
एक बोली मैं हूँ बतलाती, क्या-क्या था मेरे साथ हुआ,
शादी की प्रथम रात सखी, मेरे सँग में सोई नई बुआ,
गलती से आकर बालम ने, अपनी फूफी को जगा दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
दो रातें ऐसे ही आली, कट गईं सजन से बिना मिले,
न प्रथम मिलन हो सका सखी, ना ही हम दोनों घुले-मिले,
ये रातें ऐसे कटीं सखी, मानो दो युग को काट लिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
सब अपने घर को गए सखी, रह गए अकेले सास-ससुर,
कुछ खबर मिली सासू घर से, दोनों को जाना पड़ा उधर,
रह गए अकेले हम दोनों, किस्मत ने मौका दिला दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
मैं झूम रही थी मस्ती में, ले-लेकर आली अंगड़ाई,
मेरे ही वश में नहीं रही, मेरी ही आली तरुणाई,
उस रोज न जाने प्रीतम ने, अँखियों से क्या था पिला दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
टेबल पर खाना लगा सखी, हम दोनों बैठे खाने को,
सखि! प्रीतम तभी बढ़े आगे, हाथों से मुझे खिलाने को,
फिर एक निवाला लेकर के, प्रीतम ने मुख से लगा दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
उस रात का भोजन प्रीतम संग, नौ बजे खत्म थी कर पाई,
फिर उठा के बर्तन टेबल से, मैं उन्हें किचन में रख आई,
फिर बैठ के दर्पण के आगे, मैंने सोलह श्रंगार किया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
थी किचन मैं कॉफी बना रही, साजन पीछे से आ पहुँचे,
चुपके से चिपक गए मुझसे, और हाथ कमर में आ पहुँचे,
इससे पहले कुछ कह पाती, उनने कम्मर को दबा लिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
मैं बोली ये क्या करते हो, यह प्यार का कोई समय नहीं,
थोड़ा तो धैर्य रखो प्रीतम, इस किचन में इतनी जगह नहीं,
मैं आगे कुछ न कह पाई, साजन ने चूल्हा बुझा दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
सखि पिय ने मेरे मस्तक को, चूमा, केशों को, प्यार किया,
फिर कान में धीरे से पूछा, मैंने उस पर इकरार किया,
फिर इसी बीच सखि साजन ने, नाजुक तन मेरा घुमा लिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
रँग-रूप देख साजन मेरा, अपनी सुध-बुध को भूल गए,
बुत बनकर मुझको देख रहे, बाकी सब कुछ वो भूल गए,
कुछ होश हुआ तो प्रीतम ने, सीने से मुझको लगा लिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
मैं तो पिय से यों लिपट गई, लिपटे ज्यों वृक्ष से बेल सखी,
उस पल मैंने महसूस किया, अनुराग नहीं है खेल सखी,
है प्रीत क्या और प्रीतम क्या, इन बात का तब सब पता चला,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
इस संग से मंगल-मंगल है, इस संग के कारण जंग सखी,
यह संग सभी को प्यारा है, राजा हो चाहे रंक सखी,
इस संग के खातिर कितनों ने, अपनी हस्ती को मिटा दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
इस संग ने ऋषियों, मुनियों के, तप को कर डाला भंग सखी,
इस संग की महिमा को सुन-सुन, मैं तो रह जाती दंग सखी,
जो सुन पाया जो सीख सकी, आली सब तुझको बता दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
इस तरह कट गई रात सखी, जीवन को सफल बना डाला,
यात्रा में जो-जो घटित हुआ, तुझको सब हाल सुना डाला,
अब और न पूछ सखी मुझसे, सारा कुछ तुझको बता दिया,
उस रात की बात न पूछ सखी, जब पिय ने पहली बार छुआ॥
रणवीर सिंह (अनुपम), मैनपुरी (उप्र)
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