Sunday, December 15, 2019

843. गरीबी भूख बेकारी (मुक्तक)

843. गरीबी भूख बेकारी (मुक्तक)

गरीबी  भूख  बेकारी  के'  मसलों  से  है' क्या  मतलब?
तुम्हें गायों से' मतलब है तुम्हें फसलों से' क्या मतलब?
बदन  नंगे   उदर    खाली    ठिठुरते   आसमां  नीचे?
तुम्हें  खाली  पतीली  मौन  तसलों  से है' क्या मतलब? 

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.12.2019

Saturday, December 14, 2019

842. बनते-बनते बन गया (कुंडलिया)

842. बनते-बनते बन गया (कुंडलिया)

बनते-बनते   बन  गया,  इंसां  आदमखोर।
औरत  असुरक्षित  हुई, यहाँ-वहाँ चहुँओर।
यहाँ-वहाँ  चहुँओर, गली  में   चौराहों  पर।
तांडव  करें  पिशाच, हँसें  बेबस आहों पर।
नारी  सोचे  जिन्हें  जनें, वे   ही   हैं  हनते।
मनुज बन गया दनुज, आदमी बनते-बनते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.12.2019
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841. जाति-धर्म तय कर रहे (कुंडलिया)

841. जाति-धर्म तय कर रहे (कुंडलिया)

जाति-धर्म तय कर रहे, किसकी क्या औकात।
उसकी  ऊँची  आबरू,  जिसकी  ऊँची  जात।
जिसकी ऊँची  जाति, निम्न वह  उतना  सोचे।
लंपट  लगा   त्रिपुंड,  देह   बाला   की   नोचे।
जो हैं  धूर्त, गँवार,  हो  रही  उनकी जय-जय।
आज  मान-सम्मान, कर  रहे  जाति-धर्म तय।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.12.2019
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