Friday, December 30, 2016

312. नख़रे मत दिखला अरे (कुण्डलिया)

नख़रे मत  दिखला अरे, ओ  नखरीली नार।
भृकुटी  ये खंजरनुमा, होय  जिगर के  पार।
होय जिगर के पार,  तीर  सी  तेरी चितवन।
ऊपर  से  मुस्कान, करे है  घायल  तन-मन।
हाँ करके फिरजाय, बात ये  दिल में अखरे।
ओ  नखरीली  नार,  दिखा मत  ऐसे नख़रे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.12.2016
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.