315. तुमने ही दुर्दिन दिए रे विधना
तुमने ही दुर्दिन दिए रे विधना,
तुम ही होउ सहाय जी।
किस विधि प्रीतम से मिलूँ रे विधना,
कछु तौ देउ बताय जी।
ऐसी' प्रीत की आगरी रे गोरी,
लिख न करारे बोल जी।
रच-रच के आँखर लिखो रे गोरी,
धरउ करेजा खोल जी।
काहे की पाती करूँ रे सुअना,
काहे' की' कलम दबात जी।
काहे की स्याही करूँ रे सुअना,
कछुह समझ नहिं आत जी।
चुनर फारि पाती करो रे गोरी,
अँगुली कलम-दबात जी।
हियरा की बातें लिखो रे गोरी,
जो मन आबत-जात जी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.12.2016
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