Sunday, May 22, 2016

245. संस्कार आदर्श मिट गए (गीत)

गीत (16/14)

संस्कार आदर्श मिट गए,
अब इस नए ज़माने में।
नेकी औ ईमान बिक गए,
अपना काम चलाने में॥

नया  जोश अब, नई  उमंगें,
नई सभ्यता  है आई,
आज  सभ्य लोगों ने ली है,
नंगे  होकर अँगड़ाई।

क्या-क्या मिले देखने को अब,
यारो नए जमाने में॥ 1

आज जवानी बनी हुई  है,
पर्दों का बस आकर्षन।
आज खुली जंघाएं लेकर,
इठलाता  फिरता यौवन।

यौवन गर्वित हुआ झूमता,
अपनी देह दिखाने में॥ 2

टुन्न चमेली पौआ पीकर,
मुन्नी भी बदनाम फिरे, 
औ मुन्नी वो काम कर रही,
जो न झंडू बाम करे।

पर्दे पर यों दिखें नारियाँ,
आती लाज बताने में॥ 3

नंगे होकर ट्रांजिस्टर  संग,
आमिरखाँ प्रचार करे, 
वस्त्र त्यागकर आज सभ्यता,
लोगों को हुशियार करे।

जिस्मों का उपयोग हो रहा,
अब  बाजार बढ़ाने  में॥ 4

रणवीर सिंह (अनुपम)
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Sunday, May 15, 2016

244. आप को देखा है' जब से (गीत)

गीत (14/12)

आप को देखा है' जब से,
मन मे'रा बेकल हुआ।
पर तुम्हारा कल कभी नहिं,
आखिरी है कल हुआ।।

मिलने' को हूरें हजारों,
रोज ही मिलतीं रहीं।
सैकड़ों सुकुमारियाँ भी,
संग में चलतीं रहीं।

पर तुम्हारी सादगी पर,
दिल मे'रा पागल हुआ॥ 1

रूप भी निखरा लगे है,
और  रंगत छा गई।
चाल भी मदमस्त, तन में,
कुछ लचक है आ गई।

बढ़ गई पैरों की' रौनक,
जब से' मैं पायल हुआ॥ 2

घाव हँस-हँस खा रहा हूँ,
आह भी करता नहीं।
दर्द भी जाता नहीं औ,
जख्म भी भरता नहीं।

कैसी' ये तेरी नजर है,
जिससे' दिल घायल हुआ॥ 3

रणवीर सिंह 'अनुपम'
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