840. कंडे-सी सुलगूँ निशदिन मैं (मुक्तक)
कंडे-सी सुलगूँ निशदिन मैं, तड़पूँ जीती हूँ जर-जर के।
तुम्हरा पथ रोज निहार रही, अँखियन में सपने भर-भर के।
गुमसुम, सहमी, चौकन्नी हो, घर से निकलूँ मैं डर-डर के।
रड़ुए देखें, चटकारे लें, अधरों पर रसना धर-धर के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
01.11.2019
840. कंडे-सी सुलगत है निशदिन (मुक्तक)
कंडे-सी सुलगत है निशदिन, तड़पत है जीती जर-जर के।
प्रीतम का पंथ निहार रही, अँखियन में सपने भर-भर के।
गुमसुम, सहमी, चौकन्नी-सी, घर से निकले यह डर-डर के।
रड़ुए देखें, चटकारे लें, अधरों पर रसना धर-धर के।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
01.11.2019
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