582. अँखियाँ बोझिल लाज से (कुण्डलिया)
अँखियाँ बोझिल लाज से, गाल शर्म से लाल।
ओट हथेली की लिये, अँगुलिन पर धर भाल।
अँगुलिन पर धर भाल, झुका ग्रीवा को नीचे।
तन पर चढ़ा खुमार, कामिनी आँखें मीचे।
रंग-रूप लावण्य, देखकर कहतीं सखियाँ।
लेगीं किसकी जान, हाय ये बोझिल अँखियाँ।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
22.07.2018
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