शिक्षा की उमर में ये, यौनसुख भोगते हैं,
वासना के मारे ये बिचारे तुम देखिये।
लोधी, बुद्धा जैसे देखो, बीसों हैं बगीचे यहाँ,
खंडहरों में काम के, मारे तुम देखिये।
मुँख पे धरे हैं मुँख, छातियों में ढूँढे कुछ,
कोई-कोई जांघों के किनारे तुम देखिये।
लिपटे हुये हैं तन, कामक्रीड़ा में मगन,
झाड़ियों में रोज ये नजारे तुम देखिये।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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